मंगल...बिहार डायरी भाग 2
मैं कुछ दिन पहले ही रायपुर चला आया था ताकि जरूरी काम निपटा सकूं....बार बार बिहार से रायपुर आना संभव नहीं था
"मंगल" से अब तक मेरी कोई भी मुलाकात नहीं हुई थी,वो गांव में रिश्तेदारी में गया था.......मकान मालिक पर भरोसा कर उससे फोन पर बात कर ड्राइवरी के लिए फाइनल कर दिया था...क्योंकि ऑप्शन भी नहीं था,बिहार में नया होने के कारण परिचय का संकट ....तो "मंगल" को ये सोच रख लिया....आगे देखेंगे...सोचेंगे
"सर"....मै मंगल कल सुबह रायपुर आ रहा हूं इस ट्रेन से...घर का एड्रेस बता दे
मंगल का फोन आते ही मुझे ध्यान आया..."अरे" वापस बिहार जाने का दिन तो नजदीक आ गया है
मंगल का ट्रेन में रिजर्वेशन मैने पहले ही करवा दिया था और सफर खर्च के लिए कुछ एडवांस भी मकान मालिक के पास छोड़ दिया था
अब तक "मंगल" पटल पर ओझल ही था..सिर्फ फोन पर बाते हो रही थी
ठीक है मैं तुम्हे स्टेशन लेने आ जाऊंगा नहीं तो तुम भटक जाओगे
सर...आप क्यों तकलीफ करते है...मै आ जाऊंगा,बस एड्रेस??
मैं आ जाऊंगा स्टेशन लेने...मैने बात काटते हुए कहा
"अम्मा पापा"....अपनी बहुरानी और पोते पोतियों को बिहार भेजने के बिल्कुल पक्ष में नहीं थे
एक दिन पहले से जो अश्रु धार चालू थी बहू और सास में...मैने मजाक में कहा
"इतना तो तुम्हारी विदाई के समय भी मेरी सास नहीं रोई थी"☺️☺️
दूसरे दिन..फोन की घंटी से मेरी नींद टूटी
सर मै "मंगल".... रायपुर स्टेशन में आ गया हूं
मैं चौंक कर उठा... ओह..अलार्म लगाना भूल गया था अलसुबह ही उसकी गाड़ी आ गई थी
मैं बस आ रहा हूं आधे घंटे लगेगे
पता नहीं कैसे जान गया वो कि मैं बस नींद से जागा ही हूं और तैयार भी नहीं हुआ हूं....उसने कहा...सर आराम से आइएगा मै स्टेशन में फ्रेश होकर नाश्ता भी कर लूंगा
तकरीबन दो घंटे यानी सुबह के सात बज रहे होंगे...स्टेशन पहुंच मैने मंगल को फोन किया
कहां...हो तुम???....मै पार्किंग गेट में खड़ा हूं
तब मैने.....रहस्यमई व्यक्तित्व के "मंगल".....को पहली बार देखा था
क्रमश:-
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